top of page

नारद जयंती 2025: संवाद, भक्ति और ज्ञान के देवर्षि को समर्पित दिव्य दिवस

✍️ लेखिका: पुष्कर की लाल-किताब ज्योतिर्विद भाविका राजगुरु


हर साल वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाई जाने वाली देवर्षि नारद जयंती, केवल एक पर्व नहींबल्कि संवाद, भक्ति, ज्ञान और तप का महान प्रतीक है। देवर्षि नारद को सृष्टि का प्रथम पत्रकार, महान संगीतज्ञ, त्रिकालदर्शी एवं भगवद्भक्त माना गया है। तीनों लोकों में विचरण कर समाचारों और उपदेशों का प्रचार करने वाले नारद मुनि का जन्म इसी तिथि को हुआ था।

नारद जयंती 2025 की तिथि व शुभ मुहूर्त :


पंचांगानुसार,

  • प्रतिपदा तिथि प्रारंभ: 12 मई 2025, रात 10:25 बजे

  • प्रतिपदा तिथि समाप्त: 14 मई 2025, दोपहर 12:35 बजे

  • उदया तिथि के अनुसार नारद जयंती: 13 मई 2025, मंगलवार


विशेष शुभ मुहूर्त:

  • ब्रह्म मुहूर्त: 04:04 AM – 04:46 AM

  • प्रातः संध्या: 04:25 AM – 05:28 AM

  • अभिजीत मुहूर्त: 11:46 AM – 12:40 PM

  • विजय मुहूर्त: 02:29 PM – 03:23 PM

  • गोधूलि मुहूर्त: 06:58 PM – 07:19 PM

  • सायाह्न संध्या: 06:59 PM – 08:02 PM

  • अमृत काल: 14 मई, 12:14 AM – 02:01 AM

  • निशीथ मुहूर्त: 14 मई, 11:52 PM – 12:34 AM


नारद जयंती पूजा विधि (Puja Vidhi)

ज्योतिर्विद भाविका राजगुरु के अनुसार, नारद जयंती पर विधिवत पूजन से मनोकामना सिद्धि, विद्या और वाक्चातुर्य की प्राप्ति होती है। पूजा विधि इस प्रकार है:

1. ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

2. घर के मंदिर की साफ़-सफ़ाई करें और गंगाजल से शुद्धिकरण करें।

3. अपने इष्ट देवता का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।

4. एक चौकी पर स्वच्छ वस्त्र बिछाकर नारद जी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।

5. दीपक और धूपबत्ती जलाकर नारद मुनि की विधिपूर्वक पूजा करें।

6. फल, मिश्री और मिठाई का भोग अर्पित करें।

7. अंत में परिवार की सुख-शांति के लिए प्रार्थना करें और प्रसाद वितरित करें।


नारद जयंती का महत्व (Significance) :

  • नारद मुनि को ब्रह्मा के मानस पुत्र और भगवान विष्णु के परम भक्त के रूप में जाना जाता है।

  • उन्हें देवर्षि की उपाधि प्राप्त है क्योंकि वे ऋषियों और देवताओं दोनों के बीच में प्रतिष्ठित हैं।

  • श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं –

“देवर्षीणाम् च नारद:” अर्थात् मैं देवर्षियों में नारद हूँ।

  • नारद जी त्रिकालदर्शी और सर्वशास्त्रों के ज्ञाता हैं — वेद, पुराण, ज्योतिष, संगीत, योग, व्याकरण, खगोल-विज्ञान, भूगोल आदि।

  • उनकी उपदेश शैली संवादमूलक और लोकहितकारी होती थी।

  • इस दिन पूजा करने से जीवन में सुख, शांति, समृद्धि और विद्या का वास होता है।


नारद मुनि की पौराणिक कथा एवं जन्म रहस्य :

ज्योतिर्विद भाविका राजगुरु के अनुसार:

  • पूर्वजन्म में नारद जी एक गंधर्व थे, जिनका नाम उपबर्हण था।

  • वे अपने सौंदर्य पर अत्यधिक अभिमानी थे और एक बार अप्सराओं के साथ ब्रह्मा जी की सभा में रासलीला में लीन हो गए।

  • ब्रह्मा जी ने क्रोधित होकर उन्हें शूद्र योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया।

  • अगले जन्म में वह एक दासीपुत्र बने लेकिन भगवतभक्ति में पूर्ण रूप से लीन हो गए।

  • तप, सेवा और भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें अगला जन्म ब्रह्मा के मानस पुत्र के रूप में दिया और वे प्रसिद्ध हुए देवर्षि नारद के रूप में।

नारद मुनि का स्वरूप :

  • नारद मुनि वीणा वादन में दक्ष थे और उनके हाथों में सदैव वीणा रहती है।

  • वे बिना किसी अस्त्र के, केवल ज्ञान और भक्ति से सुसज्जित देवता हैं।

  • उनका वाहन बादल माना जाता है।

  • वे ब्रह्मलोक में निवास करते हैं और तीनों लोकों में निर्बाध विचरण करते हैं।

  • उन्हें लोकों के बीच संवादवाहक और ज्ञान का अग्रदूत माना जाता है।


देवर्षि नारद से सीखें उत्कृष्ट संवाद कौशल :

नारद जयंती न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह संवाद, सूचना, वाणी और ज्ञान की शक्ति को

समझने का दिन है।

नारद मुनि ने संवाद को केवल वाक् तक सीमित नहीं रखा, बल्कि सत्य, धर्म और लोककल्याण के

लिए उसका प्रयोग किया। वे संवाद के माध्यम से भगवान तक पहुँचने का मार्ग बताते हैं।


नारद जयंती पर क्या करें दान-पुण्य?

  • ब्राह्मणों को भोजन कराना अत्यंत शुभ माना जाता है।

  • ग्रंथ, वस्त्र, अन्न, फल और दक्षिणा का दान करें।

  • जरूरतमंदों की सहायता करें — यह जीवन में सुख-शांति और पुण्य फल देता है।

  • इस दिन किया गया कोई भी पुण्यकर्म अनेक गुना फल देता है, क्योंकि यह दिवस ज्ञान और तप की ऊर्जा से भरा होता है।


निष्कर्ष :

देवर्षि नारद जयंती केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि संवाद, भक्ति, ज्ञान, और ब्रह्मचैतन्य का उत्सव है। यह पर्व हमें सिखाता है कि सूचना का सदुपयोग, संवाद की मर्यादा और भक्ति की गहराई से ही जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है।

13 मई 2025 को मनाया जाने वाला यह पर्व, हर साधक और श्रद्धालु के लिए आत्मोन्नति, मनोबल और आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देने वाला एक दिव्य अवसर है।

नारायण नारायण

~ पुष्कर की लाल-किताब ज्योतिर्विद भाविका राजगुरु

 
 
 

Recent Posts

See All

Comments


bottom of page