धूमावती जयंती 2025: 3 जून को मां धूमावती की साधना से दूर होगी दरिद्रता, जानें पूजन विधि, मंत्र, उपाय और तांत्रिक रहस्य :
- Bhavika Rajguru
- May 28
- 3 min read
✍🏻 ज्योतिर्विद भाविका राजगुरु | पुष्कर की लाल किताब ज्योतिषी
धूमावती जयंती 2025 कब है?
ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी तिथि को मां धूमावती का प्राकट्य हुआ था, जो दस महाविद्याओं में सातवीं महाविद्या मानी जाती हैं। इस वर्ष धूमावती जयंती 3 जून 2025, मंगलवार को मनाई जाएगी।

अष्टमी तिथि प्रारंभ: 2 जून 2025, रात 8:34 बजेअष्टमी तिथि समाप्त: 3 जून 2025, रात 9:56 बजेजयंती मनाने की तिथि (उदयातिथि अनुसार): 3 जून 2025
🔯 धूमावती जयंती 2025 का विशेष मुहूर्त:
ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 04:02 से 04:43 तक
अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 11:52 से 12:47 तक
लाभ मुहूर्त: सुबह 10:35 से 12:19 तक
अमृत मुहूर्त: दोपहर 12:19 से 02:03 तक
निशीथ काल मुहूर्त: रात 11:59 से 12:40 AM (4 जून)
विशेष योग:
रवि योग: 3 जून रात 12:58 बजे से 4 जून सुबह 05:23 बजे तक
हर्षण योग: सुबह 08:09 बजे तक
पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र: 3 जून रात 12:58 बजे तक
🌑 कौन हैं देवी धूमावती?
ज्योतिर्विद भाविका राजगुरु के अनुसार, देवी धूमावती दस महाविद्याओं में से सातवीं महाविद्या हैं। ये देवी दरिद्रता, रोग, शोक, शत्रु बाधा, और तंत्र बाधा को नष्ट करने वाली हैं। ये देवी विवाहित नहीं हैं और कुमारी स्वरूप में पूजी जाती हैं। इनके स्वरूप में त्याग, वैराग्य, और तंत्र की परम शक्ति समाहित है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार:
एक कथा के अनुसार माता पार्वती ने शिवजी को क्रोध में निगल लिया, जिससे उनका शरीर धुएँ के समान विकृत हो गया। यही स्वरूप धूमावती कहलाया।
दूसरी कथा के अनुसार देवी सती के आत्मदाह के धुएँ से देवी धूमावती का प्राकट्य हुआ।
जब जीवन में बाधाएं, रोग, निर्धनता, तांत्रिक बाधाएं या शत्रुओं का भय बढ़ जाए — तब आह्वान होता है मां धूमावती का। दस महाविद्याओं में सातवीं महाविद्या के रूप में प्रतिष्ठित धूमावती देवी, महाशक्ति का वह स्वरूप हैं जो जीवन के गहनतम अंधकार को भी हर लेती हैं। वे दारुण, विकराल, अशुभ प्रतीत होती हैं — परंतु उनकी कृपा से ही समस्त विघ्न, रोग, दरिद्रता, शत्रु और तंत्र-बाधाएं समाप्त होती हैं।
🔷 देवी धूमावती: स्वरूप और तात्त्विक रहस्य :
श्री कुल से सम्बद्ध यह देवी भगवान शिव के रुद्र स्वरूप 'धूमेश्वर' की शक्ति हैं।
इन्हें दारुण विद्या के रूप में पूजा जाता है, जो विशेष रूप से उच्चाटन, विद्वेषण, मारण साधना आदि में प्रभावशाली हैं।
देवी केतु ग्रह को नियंत्रित करती हैं — अतः केतु दोष, भ्रम, मानसिक व्याधि, अज्ञात भय आदि के शमन हेतु इनका पूजन किया जाता है।
इनका सम्बन्ध भगवान विष्णु के वामन अवतार से भी जोड़ा जाता है, जिसमें वे विस्तार की शक्ति का विरोध करती हैं।
🔱 पौराणिक उत्पत्ति
नारद पाञ्चरात्र के अनुसार, मां धूमावती ने अपनी देह से उग्रचण्डिका को उत्पन्न किया, जिनकी आवाज़ सैकड़ों गीदड़ों जैसी होती है।
स्वतन्त्र तन्त्र में उल्लेख है कि जब सती देवी ने यज्ञ की अग्नि में योगाग्नि से आत्मदाह किया, तो उस यज्ञ से निकले धुएँ से देवी धूमावती का प्राकट्य हुआ।
वे श्मशान वासी, विधवा, रथविहीना, और कौवों की सवारी करने वाली दिखाई जाती हैं — यह उनका प्रतीकात्मक रूप है, जो त्याग, विरक्ति, तंत्र, तप और विकरालता का प्रतिनिधित्व करता है।
🌑 देवी की कृपा: लाभ एवं प्रभाव
घोर दरिद्रता को समाप्त कर देती हैं।
दुर्दम्य रोगों और मानसिक रोगों का नाश करती हैं।
युद्ध, मुकदमा, शत्रु भय एवं अदृश्य तांत्रिक प्रहार से रक्षा करती हैं।
साधना से राज्य, प्रतिष्ठा, शक्ति, और तंत्र-सिद्धि प्राप्त होती है।
🌺 धूमावती जयंती पर पूजा विधि (By ज्योतिर्विद भाविका राजगुरु):
📿 आवश्यक सामग्री:- देवी की तस्वीर या मूर्ति, सफेद/ग्रे वस्त्र, लाल वस्त्र और पुष्प (विशेष भोग), धतूरे के फूल, सरसों का तेल, जौ, तिल, राई, कपूर, घी, काला वस्त्र, काले तिल, नीम की पत्तियां, उड़द की खिचड़ी, सूखी रोटी, चावल आदि
🛕 पूजा विधि:
प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
पूजा स्थान को शुद्ध कर देवी की स्थापना करें।
धूप, दीप और कपूर जलाएं।
देवी को तिल, जौ, धतूरा अर्पित करें।
“ॐ धूं धूं धूमावत्यै नमः” मंत्र का 108 बार जाप करें।
नीम की पत्तियों, राई और नमक से हवन करें।
अंत में कौवे को अन्न दान करें।
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