परशुराम जयंती 2025: महर्षि परशुराम के जन्म का उत्सव, जानिए तिथि, कथा और महत्व :
- Bhavika Rajguru

- Apr 28
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भगवान परशुराम, महर्षि जमदग्नि और उनकी पत्नी रेणुका के पुत्र हैं, जिन्हें हिंदू धर्म में भगवान विष्णु का
छठा अवतार माना जाता है। वह एक ब्राह्मण योद्धा थे, जिन्होंने पृथ्वी पर बुरी ताकतों को समाप्त करने
के लिए जन्म लिया था। भगवान परशुराम ने अपने पराक्रम और शक्ति से राक्षसों और अत्याचारी क्षत्रिय
राजाओं का नाश किया और पृथ्वी पर संतुलन स्थापित किया। परशुराम जयंती उनके इस दिव्य कार्य को
याद करने और उनके द्वारा दी गई सीखों को सम्मानित करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है।

भगवान परशुराम की कथा :
पुष्कर की लाल-किताब ज्योतिर्विद भाविका राजगुरु के अनुसार, हिंदू धर्म-शास्त्रों में भगवान परशुराम का नाम
आठ अमर व्यक्तियों (चिरंजीवी) में लिया जाता है। एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा के अनुसार, कार्तवीर्य अर्जुन
नामक एक राजा ने भगवान परशुराम के पिता, महर्षि जमदग्नि के आश्रम में स्थित दिव्य गाय कामधेनु को
बलात्कारी रूप से हरण करने का आदेश दिया। जब महर्षि जमदग्नि ने राजा के इस अत्याचार का विरोध
किया, तो क्रोधित राजा अर्जुन ने महर्षि का वध कर दिया।
जब महर्षि के पत्नी रेणुका को यह खबर मिली, तो वह 21 बार अपने ह्रदय को पीटते हुए भगवान परशुराम
से अपने पिता का प्रतिशोध लेने की प्रार्थना करने लगीं। भगवान परशुराम ने प्रतिशोध की शपथ ली और
फिर 21 बार पृथ्वी से क्षत्रियों का नाश किया। वह तब तक यह कार्य करते रहे, जब तक ऋषि रुचिका ने
उन्हें रोका नहीं।
भगवान परशुराम ने भगवान शिव की तपस्या की और उनके आशीर्वाद से उन्हें एक दिव्य परशु (कुल्हाड़ी)
प्राप्त हुआ, जिससे वह राक्षसों और अत्याचारी क्षत्रिय राजाओं का नाश कर सके। उनकी बहादुरी और
न्यायप्रियता ने उन्हें एक अमर योद्धा बना दिया। भगवान परशुराम का जीवन सद्गुणों और धर्म के प्रति
उनकी निष्ठा का प्रतीक है।
परशुराम जयंती कब है?
परशुराम जयंती 2025 29 अप्रैल 2025 को, मंगलवार के दिन मनाई जाएगी।
तृतीया तिथि प्रारंभ: 29 अप्रैल, 2025 को 17:31 बजे
तृतीया तिथि समाप्त: 30 अप्रैल, 2025 को 14:12 बजे
परशुराम जयंती का महत्व :
परशुराम जयंती का महत्व विशेष रूप से इस बात में है कि यह भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम के
सम्मान में मनाया जाता है। भगवान परशुराम ने पृथ्वी पर बुराई को समाप्त करने के लिए संघर्ष किया।
उनका जन्म इस दिन हुआ था, और इसी कारण इस दिन को परशुराम जयंती के रूप में मनाया जाता है।
यह दिन विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करना चाहते हैं
या जीवन में सफलता की कामना करते हैं।
भगवान परशुराम के प्रति श्रद्धा और भक्ति से व्यक्ति को साहस, बुद्धि और सफलता प्राप्त होती है। इस
दिन व्रत रखने से पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं।
अक्षय तृतीया का पर्व :
परशुराम जयंती के साथ-साथ अक्षय तृतीया भी मनाई जाती है। अक्षय तृतीया त्रेता युग के पहले दिन का
प्रतीक है, और इस दिन को अत्यधिक शुभ माना जाता है। इस दिन लोग नए कार्यों की शुरुआत करते हैं,
विशेष रूप से सोना खरीदने के लिए यह समय शुभ माना जाता है। लोग इस दिन विष्णु पूजा का आयोजन
करते हैं और भक्ति गीतों के साथ भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं।
क्या भगवान परशुराम अभी भी जीवित हैं?
हिंदू धर्म के अनुसार, भगवान परशुराम को भगवान शिव ने अमरता का वरदान दिया था। कहा जाता है कि
वह आज भी जीवित हैं और वर्तमान समय में कहीं न कहीं अपने तपस्वी जीवन में लीन हैं। माने जाता है
कि वह मंदराचल पर्वत के पास समाधि में लीन हैं।
परशुराम जयंती पूजा विधि :
परशुराम जयंती के दिन पूजा करना अत्यधिक लाभकारी माना जाता है। पूजा की विधि इस प्रकार है:
1. प्रातः काल स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
2. सच्चे मन से संकल्प लें और भगवान परशुराम के चित्र या मूर्ति का पूजन करें।
3. मंत्रों का जाप करें:
o ॐ रां रां ॐ रां रां परशुहस्ताय नमः
o ॐ ब्रह्मक्षत्राय विद्महे क्षत्रियान्ताय धीमहि तन्नो राम: प्रचोदयात्
o जमदग्न्याय विद्यामहे महावीर धीमहि धन्नो परशुराम: प्रचोदयात्
4. फलाहार का व्रत रखें और इस दिन सिर्फ फल और दूध से बने पदार्थ खाएं।
5. नैवेद्य अर्पित करें और दीप, धूप आदि दिखाकर पूजा समाप्त करें।
6. रातभर राम मंत्र का जाप करें और दूसरे दिन पारण करें।
परशुराम जयंती के उपाय :
भगवान परशुराम को साहस और बुद्धि का देवता माना जाता है। इस दिन उनके पूजा से जीवन में
सफलता, साहस और ज्ञान प्राप्त होता है। विशेष रूप से चंदन, तुलसी के पत्ते, कुमकुम, फूल, मिठाई चढ़ाकर
और व्रत रखकर पूजा करने से जीवन में सकारात्मक परिणाम मिलते हैं।
परशुराम के बारे में कुछ रोचक तथ्य:
1. भगवान परशुराम का जन्म महर्षि जमदग्नि और उनकी पत्नी रेणुका के घर हुआ था।
2. उन्हें अमरता का वरदान मिला था और वह हिंदू धर्म के सात चिरंजीवियों में से एक माने जाते हैं।
3. महाभारत में परशुराम ने कई महत्वपूर्ण योद्धाओं को शिक्षा दी थी।
4. रामायण में भी उनका उल्लेख मिलता है, जहां उन्होंने भगवान राम को चुनौती दी थी।
5. भगवान परशुराम का संबंध कलारीपयट्टू (मार्शल आर्ट्स) से भी जोड़ा जाता है।
निष्कर्ष :
परशुराम जयंती का यह पर्व भगवान परशुराम के सम्मान में मनाया जाता है और यह उनके साहस, धर्म के
प्रति निष्ठा और न्यायप्रियता को याद करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। इस दिन भगवान परशुराम की
पूजा करने से जीवन में समृद्धि, सफलता, और सकारात्मक परिवर्तन होते हैं। साथ ही, यह दिन नए कार्यों
की शुरुआत और शुभ कर्मों को करने के लिए बहुत ही उपयुक्त माना जाता है।
परशुराम जयंती की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ!
पुष्कर की लाल-किताब ज्योतिर्विद, भाविका राजगुरु


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