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प्रथम नवरात्र घट-स्थापना एवं माँ शैलपुत्री की पूजा: विधि और महत्व :

माँ शैलपुत्री का स्वरूप :

नवरात्रि देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा का पावन अवसर है, और इस पर्व के पहले दिन माँ शैलपुत्री

की पूजा विशेष महत्व रखती है। माँ शैलपुत्री का स्वरूप शांत और सहजता से भरा हुआ है। उनके दाएं

हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल होता है। उनकी सवारी वृषभ (बैल) होता है। माँ

शैलपुत्री चंद्रमा का प्रतिनिधित्व करती हैं और पर्वतराज हिमालय की पुत्री मानी जाती हैं।

इस दिन विधिपूर्वक पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि और शांति की प्राप्ति होती है।

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इस दिन की पूजा विधि और हवन की प्रक्रिया:

स्नान और वस्त्र: नवरात्रि के पहले दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।

मंदिर की सजावट: पूजा स्थल की साफ-सफाई और सजावट करें। इसे अच्छे से धोएं और स्वच्छ वस्त्र

बिछाएँ। पूजा करने के लिए एक साफ आसन पर बैठें और आसन पर बैठते समय अपने चारों ओर

जल छिड़कें और शिखा बांधें।

अखंड ज्योत: मंदिर में अखंड ज्योत जलाएं।

कलश स्थापना:

मिट्टी का बर्तन: पहले एक मिट्टी के चौड़े बर्तन में मिट्टी भरें और उसमें जौ के बीज बोएं।

कलश: एक स्वच्छ कलश को पवित्र जल से भरें। इसमें एक सिक्का, कुछ फूल डालें, और अशोक या

आम के पत्ते भी डालें। नारियल पर कलावा बांधकर उसे लाल कपड़े में लपेटें और कलश के ऊपर

स्थापित कर दें।

मंत्र जाप: कलश को स्थापित करते समय निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करें: ॐ वरुणाय नमः।

कलश को पूजा स्थल पर मंदिर की उत्तर-पूर्व दिशा में स्थापित करें।


माँ शैलपुत्री की पूजा:

ध्यान और संकल्प: पूजन प्रारंभ करने से पहले, माँ शैलपुत्री का ध्यान करें और संकल्प लें कि आप

उनके पूजन के सभी विधियों का पालन करेंगे।

आवाहन: माँ शैलपुत्री का आवाहन करें और उन्हें पुष्प अर्पित करें।

वस्त्र: माँ शैलपुत्री को नयें वस्त्र अर्पित करें। सफेद या हल्के रंग के वस्त्र अर्पण किए जाते हैं।

धूप और दीप: धूप और दीप जलाकर माँ को अर्पित करें। इस दौरान मंत्र उच्चारण करें: ॐ जयन्ती

मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।

अर्चना: माँ शैलपुत्री की मूर्ति या चित्र सामने फूल, अक्षत, कुमकुम, चंदन और अन्य पूजा सामग्री अर्पित

करें।

भोग अर्पण: माँ को विशेष भोग अर्पित करें, जैसे फल, मिठाई, या अन्य प्रसाद। भोग अर्पित करते समय

निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करें:या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै

नमस्तस्यै नमो नमः।

हवन की विधि:

हवन नवरात्री में नित्य 9 दिवस किया जायें तो उत्तम होगा-

स्थान और सामग्री: एक स्वच्छ स्थान पर हवन कुंड तैयार करें और इसके लिए आवश्यक सामग्री

जैसे लकड़ी(हवन समिधा), गाय के गोबर के कंडे, देशी-घी और हवन सामग्री पास में रखें।

मंत्र जाप: हवन शुरू करने से पहले ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे मंत्र का 108 बार जाप करें |

. हवन: हविष्‍य अर्पण: प्रत्येक मंत्र जाप के बाद, हवन कुंड में घी, सूखे मेवे, और अन्य हवन सामग्री स्वाहाः

बोलकर अर्पित करें। इसके बाद, खीर और शहद का मिश्रण भी उसी मंत्र से अर्पित करें।

पूर्णाहुति: हवन पूर्ण करने के लिए शिवजी और ब्रह्माजी के नाम से आहुति दें।

यदि संभव एवं सक्षम हो तो किसी प्रबुद्ध विद्वान् पंडित से माता की स्थापना, षोडशोपचार पूजन

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आरती और प्रसाद: हवन के बाद माता दुर्गा की आरती करें, आभार प्रकट करें, पूजा स्थल पर तीन बार

परिक्रमा करें और प्रसाद का वितरण करें और स्वयं भी ग्रहण करें।

प्रणाम: माँ शैलपुत्री को प्रणाम करें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।

प्रार्थना-

ॐ महिषघ्नि महामाये चामुण्डे मुण्डमालिनि । द्रव्यमारोग्यमैश्वर्यं देहि देवि नमः सदा ॥

ॐ सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते । भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ॥

माँ शैलपुत्री स्वरूप की पूजा का महत्व:

ज्योतिष विज्ञान के अनुसार जो व्यक्ति जन्म-कुंडली में चन्द्रमा की अशुभता/महादशा से

पीड़ित है उनको माँ शैलपुत्री की पूजा से चंद्रमा के शुभ फलों की प्राप्ति होती है और भक्तों को

स्थिरता और अडिग भक्ति प्राप्त होती है।


इस दिन विधिपूर्वक पूजा करने से माँ शैलपुत्री की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि

और शांति की प्राप्ति होती है। नवरात्रि के इस पावन अवसर पर पूजा और हवन की विधियों को

श्रद्धा और ध्यान के साथ संपन्न करें।


प्रथम नवरात्रि की आप सभी को हमारी ओर से ढेरों शुभकामनाएं।

जय माँ शैलपुत्री !



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