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श्रावण मास-शनि प्रदोष- शनि पीड़ा से मुक्ति एवं मनोकामना पूर्ति का महापर्व:

शनि त्रयोदशी को शनि प्रदोष के नाम से भी जाना जाता है । हिंदू धर्म में इसका बहुत

धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व है। यह हिंदु माह के प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी  तिथि को मनाया

जाता है।

जब  प्रदोष  शनिवार को होता है, तो इसे शनि प्रदोष के नाम से जाना जाता है। यह दिन

भगवान शिव, देवी पार्वती और शनिदेव की पूजा के लिए समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि

प्रदोष के दिन व्रत रखने से मानसिक अशांति से राहत मिलती है, विचारों में स्पष्टता आती है

और चंद्र दोष दूर होते हैं। इस शुभ दिन पर भगवान शिव और देवी पार्वती के साथ भगवान

शनि की पूजा करने से उन्हें सुख, बुद्धि, ज्ञान और इच्छाओं की पूर्ति का आशीर्वाद मिलता

है। भगवान शनि को सम्मानित करने और उनकी दिव्य कृपा पाने के लिए अनुष्ठान, प्रार्थना

और धार्मिक गतिविधियाँ की जाती हैं।

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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शनि भगवान शिव के परम भक्त हैं। इसलिए शनि त्रयोदशी के

दिन भगवान शिव और शनि से संबंधित प्रभावी उपाय करने से भक्तों को दोनों देवताओं का

शुभ आशीर्वाद प्राप्त होता है।

माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं, जबकि

निःसंतान दंपत्तियों को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है।

आइए जानते हैं |


शनि त्रयोदशी की तिथि, समय, अनुष्ठान और महत्व

हिंदु वैदिक पंचांग के अनुसार, श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 17 अगस्त को

प्रातः 8:05 मिनट से प्रारंभ होगी. इस तिथि की मान्यता 18 अगस्त को प्रातः 5:51 मिनट

तक रहेगी. ऐसे में प्रदोष काल के पूजा मुहूर्त को देखते हुए श्रावण का अंतिम प्रदोष व्रत

यानि शनि प्रदोष व्रत 17 अगस्त दिन शनिवार को रखा जाएगा.|


2 शुभ योग में शनि प्रदोष व्रत

श्रावण का अंतिम प्रदोष व्रत यानि शनि प्रदोष व्रत के दिन दो शुभ योग बनने वाले हैं. व्रत

के दिन प्रीति योग सूर्योदय से लेकर प्रातः10:48 तक है. उसके बाद से आयुष्मान योग प्रारंभ

हो जाएगा, जो अगले दिन 18 अगस्त को प्रातः 7:51 तक रहेगा.|


शनि प्रदोष व्रत मुहूर्त

श्रावण के इस शनि प्रदोष व्रत की पूजा का मुहूर्त 2 घंटे 11 मिनट तक है. जो लोग 17

अगस्त को शनि प्रदोष का व्रत रखेंगे, वे भगवान शिव की पूजा शाम के समय में 6:58

मिनट से रात 9:09 मिनट के बीच कभी भी कर सकते हैं.|


शनि प्रदोष के दिन रुद्राभिषेक समय

यह श्रावण का शनि प्रदोष व्रत है. शास्त्रों के अनुसार, शुक्ल पक्ष में त्रयोदशी तिथि के दिन

भगवान शिव नंदी पर सवार होकर संपूर्ण जगत में भ्रमण करते हैं और प्रसन्न रहते हैं ऐसे

में इस दिन शिवजी का अभिषेक करना शुभ होता है। इसी के साथ इस दिन प्रीति और

आयुष्मान योग का शुभ संयोग भी बन रहा है। इसके अतिरिक्त बुधादित्य राजयोग भी

प्रभावशाली रहेंगा। वहीं इस समय शनि भी अपनी मूल त्रिकोण राशि कुंभ में रहने वाले हैं।

शनि अपनी राशि कुंभ में गोचर करेंगे। ऐसे में इस दिन भगवान शिव की पूजा अर्चना करना

या रुद्राभिषेक करना विशेष फलदायी रहने वाला है। ऐसे में शनिवार के दिन आप सूर्योदय से

लेकर पूरे दिन कभी भी भगवान शिव का रुद्राभिषेक कर सकते हैं। क्यों​कि पूरे दिन शिववास

रहेगा. श्रावण में हर दिन शिववास होता है. वैसे शनि प्रदोष के दिन शिववास कैलाश पर

प्रात:काल से लेकर सुबह 8:05 मिनट तक है. उसके बाद नंदी पर होगा, जो अगले दिन

प्रातःकाल 5:51 तक रहेगा.|

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शनि प्रदोष व्रत- कालसर्प दोष पूजा समय

शनि प्रदोष व्रत वाले दिन आप कालसर्प दोष की पूजा भी करा सकते हैं. कालसर्प दोष से

शिव जी की पूजा राहुकाल में कराते हैं. उस दिन राहुकाल का समय प्रातः 09:08 से प्रातः

10:47 तक है.|


शनि त्रयोदशी- पूजा अनुष्ठान-

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, त्रयोदशी तिथि को सूर्यास्त के बाद भगवान शिव आनंद से

मग्न होकर कैलाश पर नृत्य करते हैं. उस समय वह प्रसन्न मुद्रा में होते हैं. इस वजह से

उस समय में उनकी पूजा करते हैं, ताकि उनकी कृपा प्राप्त हो और मनोकामनाएं पूरी हों.

यही कारण है कि प्रदोष को शाम के समय शिव पूजा ​होती है:

 प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर अपने नित्यकर्म व स्नान करके साफ वस्त्र धारण करें।

 किसी शिवालय में भगवान् शिव सहित शिव-परिवार का विधि-विधान से स्वयं या किसी

प्रबुद्ध पंडित से पूजा करवानी चाहिए।

 पूजा के समय उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुख करना चाहिए।

 भक्तगण प्रदोष काल में पूजा करते हैं , जो संध्या काल होता है ।

 इस दिन उपवास भी रखना चाहिये तथा केवल फल व सात्विक आहार का सेवन करना

चाहिये |

 मान्यता के अनुसार प्रदोष व्रत करने से गौ-दान का पुण्य प्राप्त होता है |


पूजन के समय स्तुति एवं प्रार्थना मन्त्र-

 शिव नमस्कार मंत्र

नमो शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय

च।। ईशानः सर्वविद्यानामीश्वरः सर्वभूतानां ब्रम्हाधिपतिमहिर्बम्हणोधपतिर्बम्हा शिवो मे अस्तु

सदाशिवोम।


श‍िव नामावली मंत्र

 श्री शिवाय नम:

 श्री शंकराय नम:

 श्री महेश्वराय नम:

 श्री सांबसदाशिवाय नम:

 श्री रुद्राय नम:

 ॐ पार्वतीपतये नम:

 ॐ नमो नीलकण्ठाय नम:

किसी भी मन्त्र का 108 बार जप कर सकते है अथवा हर मन्त्र से एक बिल्वपत्र शिवलिंग

पर अर्पण कर सकते है |

शिव आवाहन मंत्र

ॐ मृत्युंजय परेशान जगदाभयनाशन ।

तव ध्यानेन देवेश मृत्युप्राप्नोति जीवती ।।

वन्दे ईशान देवाय नमस्तस्मै पिनाकिने ।

नमस्तस्मै भगवते कैलासाचल वासिने ।

आदिमध्यांत रूपाय मृत्युनाशं करोतु मे ।।

त्र्यंबकाय नमस्तुभ्यं पंचस्याय नमोनमः ।

नमोब्रह्मेन्द्र रूपाय मृत्युनाशं करोतु मे ।।

नमो दोर्दण्डचापाय मम मृत्युम् विनाशय ।।

देवं मृत्युविनाशनं भयहरं साम्राज्य मुक्ति प्रदम् ।

नमोर्धेन्दु स्वरूपाय नमो दिग्वसनाय च ।

नमो भक्तार्ति हन्त्रे च मम मृत्युं विनाशय ।।


अज्ञानान्धकनाशनं शुभकरं विध्यासु सौख्य प्रदम् ।

नाना भूतगणान्वितं दिवि पदैः देवैः सदा सेवितम् ।।

सर्व सर्वपति महेश्वर हरं मृत्युंजय भावये ।


शिव स्तुति मंत्र

ॐ नमो हिरण्यबाहवे हिरण्यवर्णाय हिरण्यरूपाय हिरण्यपतये

अंबिका पतये उमा पतये पशूपतये नमो नमः

ईशान सर्वविद्यानाम् ईश्वर सर्व भूतानाम्

ब्रह्मादीपतेये ब्रह्मनोदिपतेये ब्रह्मा शिवो अस्तु सदा शिवोहम

तत्पुरुषाय विद्महे वागविशुद्धाय धिमही तन्नो शिव प्रचोदयात्

महादेवाय विद्महे रुद्रमूर्तये धिमही तन्नों शिव प्रचोदयात्

तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमही तन्नो रूद्र प्रचोदयात

नमस्ते अस्तु भगवान विश्वेश्वराय महादेवाय त्र्यंबकाय त्रिपुरान्तकाय त्रिकालाग्नी कालाय कालाग्नी

रुद्राय नीलकंठाय मृत्युंजयाय सर्वेश्वराय सदशिवाय श्रीमन महादेवाय नमः

 शनि प्रदोष व्रत की कथा का पाठ करें. उसके बाद शिव जी की आरती करें.

 पूजा के अंत में भगवान शिव से संतान प्राप्ति के लिए प्रार्थना करें. शिव कृपा से आपकी

मनोकामनाएं पूरी होंगी |


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